Shri Krishna Chalisa: श्री कृष्ण चालीसा एक अत्यंत लोकप्रिय और श्रद्धा से भरी भक्ति रचना है, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं, उनकी महिमा और उनके भक्तों के प्रति करुणा का सुंदर वर्णन किया गया है। इस चालीसा के प्रत्येक दोहे और चौपाई में श्रीकृष्ण के बाल रूप, उनके अद्भुत चमत्कारों और जीवन के प्रमुख प्रसंगों का भावपूर्ण चित्रण है।
चालीसा में श्रीकृष्ण के जन्म से लेकर उनके गोपियों संग रास, कंस वध, कालिया नाग मर्दन, गोवर्धन पर्वत उठाने जैसे प्रसिद्ध लीलाओं का वर्णन है। साथ ही भक्त सुदामा, मीरा और द्रौपदी जैसे भक्तों की मदद करने वाले भगवान कृष्ण के करुणामय स्वरूप को भी दर्शाया गया है।
श्री कृष्ण चालीसा का पाठ करने से जीवन में प्रेम, भक्ति और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। माना जाता है कि इसका नियमित पाठ करने से भक्त को भगवान श्रीकृष्ण की कृपा प्राप्त होती है और सभी दुख-दर्द दूर हो जाते हैं।
Sri Krishna Chalisa Lyrics Hindi (श्री कृष्ण चालीसा पाठ)
🌸 श्री कृष्ण चालीसा 🌸
श्री कृष्ण प्रभु को समर्पित भक्ति पूर्ण चालीसा 🪔
॥ दोहा ॥
बंशी शोभित कर मधुर, नील जलद तनु श्याम।
अरुण अधर जनु बिम्ब फल, नयन कमल अभिराम॥
पुरनिंदु अरविंद मुख, पिताम्बर शुभ साज।
जय मनमोहन मदन छवि, कृष्णचंद्र महाराज॥
॥ चौपाई ॥
जय यदुनंदन जय जगवंदन।
जय वासुदेव देवकी नंदन॥१॥
जय यशोदा सुत नंद दुलारे।
जय प्रभु भक्तन के रखवारे॥२॥
जय नटनागर नाग नथैया।
कृष्ण कन्हैया धेनु चरैया॥३॥
पुनि नख पर प्रभु गिरिवर धारो।
आओ दीनन कष्ट निवारो॥४॥
बंसी मधुर अधर धरी तेरी।
होवे पूरण मनोरथ मेरी॥५॥
आओ हरी पुनि माखन चाखो।
आज लाज भक्तन की राखो॥६॥
गोल कपोल चिबुक अरुनारे।
मृदुल मुस्कान मोहिनी डारे॥७॥
रंजित राजिव नयन विशाला।
मोर मुकुट वैजयंती माला॥८॥
Ramayan Sankirtan: इसे पढ़ने मात्र से पाएँ संपूर्ण रामायण पढ़ने का फल
कुंडल श्रवण पीतपट आछे।
कटी किंकिनी काछन काछे॥९॥
नील जलज सुंदर तनु सोहे।
छवि लखी सुर नर मुनि मोहे॥१०॥
मस्तक तिलक अलक घुंघराले।
आओ श्याम बांसुरी वाले॥११॥
करि पी पान, पुतनाहीं तारयो।
अका बका कागा सुर मारयो॥१२॥
मधुवन जलत अग्नि जब ज्वाला।
भये शीतल, लखिताहीं नंदलाला॥१३॥
सुरपति जब ब्रिज चढ़यो रिसाई।
मूसर धार बारि बरसाई॥१४॥
लगत-लगत ब्रिज चाहं बहायो।
गोवर्धन नखधारी बचायो॥१५॥
लखी यशोदा मन भ्रम अधिकाई।
मुख महं चौदह भुवन दिखाई॥१६॥
दुष्ट कंस अति ऊधम मचायो।
कोटि कमल कहाँ फूल मंगायो॥१७॥
नाथी कालियहिं तब तुम लीन्हें।
चरनचिंह दै निर्भय किन्हें॥१८॥
करी गोपिन संग रास विलासा।
सब की पूरण करी अभिलाषा॥१९॥
केतिक महा असुर संहारयो।
कंसहि केश पकड़ी दी मारयो॥२०॥
मातु पिता की बंदी छुड़ाई।
उग्रसेन कहाँ राज दिलाई॥२१॥
माहि से मृतक छहों सुत लायो।
मातु देवकी शोक मिटायो॥२२॥
भोमासुर मुर दैत्य संहारी।
लाये शत दश सहस कुमारी॥२३॥
दी भिन्हीं त्रिन्चीर संहारा।
जरासिंधु राक्षस कहां मारा॥२४॥
असुर वृकासुर आदिक मारयो।
भक्तन के तब कष्ट निवारयो॥२५॥
दीन सुदामा के दुख तारयो।
तंदुल तीन मुठी मुख डारयो॥२६॥
प्रेम के साग विदुर घर मांगे।
दुर्योधन के मेवा त्यागे॥२७॥
लाखी प्रेम की महिमा भारी।
नौमी श्याम दीनन हितकारी॥२८॥
मारथ के पार्थ रथ हांके।
लिए चक्र कर नहीं बल थाके॥२९॥
निज गीता के ज्ञान सुनाए।
भक्तन हृदय सुधा बरसाए॥३०॥
श्री कृष्ण स्तुति: इसके पाठ मात्र से मिल जाता है सम्पूर्ण भागवत का फल (Krishna stuti)
मीरा थी ऐसी मतवाली।
विष पी गई बजाकर ताली॥३१॥
राणा भेजा सांप पिटारी।
शालिग्राम बने बनवारी॥३२॥
निज माया तुम विधिहीन दिखायो।
उरते संशय सकल मिटायो॥३३॥
तव शत निंदा करी ततकाला।
जीवन मुक्त भयो शिशुपाला॥३४॥
जबहीं द्रौपदी तेर लगाई।
दीनानाथ लाज अब जाई॥३५॥
तुरतहिं वसन बने नंदलाला।
बढ़े चीर भै अरि मुँह काला॥३६॥
अस अनाथ के नाथ कन्हैया।
डूबत भंवर बचावत नैया॥३७॥
सुंदरदास आस उर धारी।
दयादृष्टि कीजे बनवारी॥३८॥
नाथ सकल मम कुमति निवारो।
छमो बेग अपराध हमारो॥३९॥
खोलो पट अब दर्शन दीजे।
बोलो कृष्ण कन्हैया की जय॥४०॥
॥ दोहा ॥
यह चालीसा कृष्ण का, पथ करै उर धारी।
अष्ट सिद्धि नव निधि फल, लहे पदार्थ चारी॥
🌼 जय श्रीकृष्ण! राधे राधे! 🌼