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चैत्र नवरात्रि 2025: माँ दुर्गा हाथी पर सवार, सुख-समृद्धि और वर्षा का शुभ संकेत, जानें माँ शैलपुत्री पूजन का महत्व और स्तोत्र

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चैत्र नवरात्रि 2025 का यह विशेष महत्व रहेगा कि इस वर्ष मां दुर्गा हाथी पर सवार होकर आ रही हैं, जो अत्यंत शुभ संकेत माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार जब मां हाथी पर सवार होकर आती हैं, तो यह संपन्नता, बारिश और सुख-समृद्धि का प्रतीक होता है।

🌼 चैत्र नवरात्रि 2025 तिथि और शुभ मुहूर्त:

चैत्र नवरात्रि का पहला दिन भगवती के पहले रूप माँ शैलपुत्री को समर्पित है।

🙏 नवरात्रि के प्रथम दिन माँ शैलपुत्री का पूजन करने से धन, ऐश्वर्य, सौभाग्य और आरोग्य की प्राप्ति होती है। 🙏

🌼 माँ शैलपुत्री का स्वरूप:

🌸 माँ शैलपुत्री का महत्व:

🌺 माँ शैलपुत्री देवी स्तोत्र 🌺

🙏 नवरात्रि के प्रथम दिवस विशेष 🙏

!! ध्यान !!
वंदे वाञ्छितलाभाय चंद्रार्ध कृतशेखराम्।
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥

पूर्णेन्दु निभांगौरी मूलाधार स्थितां प्रथम दुर्गा त्रिनेत्रा।
पटांबर परिधानां रत्नकिरीटां नाना अलंकार भूषिता॥

प्रफुल्ल वदनां पल्लवाधरां कान्त कपोलां तुंग कुचाम्।
कमनीयां लावण्यां स्मेरमुखीं क्षीण मध्यां नितंबनीम्॥

!! स्तोत्र !!
प्रथम दुर्गा त्वं हि भवसागर तारणीम्।
धन ऐश्वर्य दायिनी शैलपुत्री प्रणमाम्यहम्॥

त्रिलोक जननी त्वं हि परमानंद प्रदायिनीम्।
सौभाग्य आरोग्य दायिनी शैलपुत्री प्रणमाम्यहम्॥

चराचरेश्वरी त्वं हि महामोह विनाशिनीम्।
भुक्ति मुक्ति दायिनी शैलपुत्री प्रणमाम्यहम्॥

चराचरेश्वरी त्वं हि महामोह विनाशिनीम्।
भुक्ति मुक्ति दायिनी शैलपुत्री प्रणमाम्यहम्॥

🌸 जय माँ शैलपुत्री 🌸

🌸 माँ शैलपुत्री की व्रत कथा 🌸

मां दुर्गा को सर्वप्रथम शैलपुत्री के रूप में पूजा जाता है। हिमालय के वहां पुत्री के रूप में जन्म लेने के कारण उनका नामकरण हुआ शैलपुत्री। इनका वाहन वृषभ है, इसलिए यह देवी वृषारूढ़ा के नाम से भी जानी जाती हैं। इस देवी ने दाएं हाथ में त्रिशूल धारण कर रखा है और बाएं हाथ में कमल सुशोभित है। यही देवी प्रथम दुर्गा हैं। ये ही सती के नाम से भी जानी जाती हैं। उनकी एक मार्मिक कहानी है।

एक बार जब प्रजापति ने यज्ञ किया तो इसमें सारे देवताओं को निमंत्रित किया, भगवान शंकर को नहीं। सती यज्ञ में जाने के लिए विकल हो उठीं। शंकरजी ने कहा कि सारे देवताओं को निमंत्रित किया गया है, उन्हें नहीं। ऐसे में वहां जाना उचित नहीं है।

सती का प्रबल आग्रह देखकर शंकरजी ने उन्हें यज्ञ में जाने की अनुमति दे दी। सती जब घर पहुंचीं तो सिर्फ मां ने ही उन्हें स्नेह दिया। बहनों की बातों में व्यंग्य और उपहास के भाव थे। भगवान शंकर के प्रति भी तिरस्कार का भाव है। दक्ष ने भी उनके प्रति अपमानजनक वचन कहे। इससे सती को क्लेश पहुंचा।

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वे अपने पति का यह अपमान न सह सकीं और योगाग्नि द्वारा अपने को जलाकर भस्म कर लिया। इस दारुण दुःख से व्यथित होकर शंकर भगवान ने उस यज्ञ का विध्वंस करा दिया। यही सती अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्मीं और शैलपुत्री कहलाईं।

पार्वती और हेमवती भी इसी देवी के अन्य नाम हैं। शैलपुत्री का विवाह भी भगवान शंकर से हुआ। शैलपुत्री शिवजी की अर्द्धांगिनी बनीं। इनका महत्व और शक्ति अनंत है।

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