इस साल प्रयागराज में हर 144 साल में एक बार होने वाले महाकुंभ मेले का भव्य आयोजन हो रहा है। इस मेले को गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के पवित्र संगम पर आयोजित किया जाता है, जो भारतीय संस्कृति का सबसे बड़ा धार्मिक पर्व है।
भारतीय संस्कृति का एक पवित्र उत्सव, महाकुंभ मेला, प्राचीन काल से आज तक कायम है। यह मेला आस्था का एक प्रतीक है, साथ ही खगोलीय विज्ञान, दर्शन और भारतीय परंपरा का एक अद्भुत संगम भी है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, समुद्र मंथन से निकले अमृत कलश की बूंदें हरिद्वार, प्रयागराज (इलाहाबाद), उज्जैन और नासिक में गिरीं। इसलिए इन चार स्थानों पर कुंभ मेले होते हैं।

खगोलीय अनुमानों के अनुसार कुंभ और महाकुंभ का आयोजन अनंत काल से किया जाता है। विष्णु पुराण में कहा गया है कि हरिद्वार में कुंभ का आयोजन तब होता है जब गुरु कुंभ राशि में प्रवेश करता है और सूर्य मेष राशि में होता है। इसी तरह, सूर्य और गुरु, सिंह राशि मे होते हैं तो नासिक में कुंभ लगता हैं। जब गुरु कुंभ राशि में प्रवेश करता है, तो उज्जैन में कुंभ होता है। माघ अमावस्या के दिन प्रयागराज में सूर्य और चंद्रमा मकर राशि में होते हैं और गुरु मेष राशि में होता है। आज भी इस खगोलीय गणना का सटीक पालन किया जाता है।

अर्ध कुंभ
हरिद्वार और प्रयागराज में हर छह साल में धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम अर्ध कुंभ होता है। धार्मिक रूप से बहुत पवित्र गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों के संगम पर यह समारोह होता है। अर्ध कुंभ महत्वपूर्ण है क्योंकि इसे कुंभ मेले का आधा चक्र मानते हैं। संगम में स्नान करने से पापों का नाश होता है और मोक्ष मिलता है, इसलिए लाखों लोग इसमें स्नान करने आते हैं। खगोलीय गणनाएं भी इसके आयोजन का समय निर्धारित करती हैं। अर्ध कुंभ का आयोजन होता है जब बृहस्पति वृश्चिक राशि में और सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है।
कुंभ मेला
दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक और सांस्कृतिक उत्सव कुंभ मेला हर बारह साल में चार स्थानों पर आयोजित होता है: हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक। इसे भारत की आस्था और संस्कृति का प्रतीक माना जाता है। कुंभ मेले की पौराणिक कथा समुद्र मंथन से संबंधित है, जिसमें देवताओं और असुरों ने अमृत कलश के लिए लड़ाई लड़ी। अमृत स्नान, पवित्र नदियों में स्नान, इस कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण है।

पूर्ण कुम्भ
पूर्ण कुंभ मेला प्रयागराज में हर बारह साल में आयोजित होने वाले कुंभ मेले का ही विस्तार है। यह अन्य कुंभ मेलों से अधिक महत्वपूर्ण है और इसे कुंभ का पूर्ण रूप मानते हैं। इस समारोह का मुख्य उद्देश्य आत्मा की शुद्धि और मोक्ष प्राप्ति है, जो पवित्र नदियों गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर होता है।
महाकुम्भ
भारतीय धार्मिक उत्सवों का सबसे बड़ा पर्व महाकुंभ मेला है, जो हर 144 साल में प्रयागराज में ही होता है। यह कुंभ मेले का सबसे महत्वपूर्ण और पवित्र रूप है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, इस मेले में संगम पर स्नान करना आत्मा को पापों से मुक्त करता है और उसे पवित्र बनाता है।

शेष तीन स्नान
29 जनवरी 2025 को मौनी अमावस्या होगी: दूसरा शाही स्नान।
वसंत पंचमी (3 फरवरी 2025): तीसरा शाही (अमृत) स्नान
माघी पूर्णिमा (12 फरवरी 2025): कल्पवास का अंत
महाशिवरात्रि, 26 फरवरी 2025 को, महाकुंभ का अंतिम दिन होगा।