Nuclear Arsenal Race: एशिया में परमाणु हथियारों की होड़ दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है और इस बार अमेरिका सबसे ज्यादा टेंशन में है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को डर है कि कहीं भारत, पाकिस्तान और चीन परमाणु ताकत के मामले में अमेरिका को पीछे ना छोड़ दें। इसीलिए अब ट्रंप खुलकर सामने आए हैं और उनका कहना है कि परमाणु हथियारों की इस रेस (Nuclear Arsenal Race) को रोकना बहुत जरूरी है। वो चाहते हैं कि रूस, चीन, भारत और पाकिस्तान जैसे देशों के साथ बैठकर बात हो ताकि इस खतरनाक दौड़ पर ब्रेक लगाया जा सके।
असल में ट्रंप की सबसे बड़ी चिंता है चीन। क्योंकि चीन इतनी तेजी से अपनी परमाणु ताकत बढ़ा रहा है कि आने वाले पांच सालों में वो अमेरिका के बराबर खड़ा हो सकता है। ट्रंप ने कहा है कि अमेरिका और रूस के पास दुनिया के सबसे ज्यादा न्यूक्लियर हथियार हैं, लेकिन चीन जिस रफ्तार से बढ़ रहा है, अगर उसे नहीं रोका गया तो हालात बिगड़ जाएंगे। ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल में चीन से इस मुद्दे पर बात करने की कोशिश की थी, लेकिन नतीजा शून्य रहा। अब वो एक बार फिर कोशिश करना चाहते हैं, लेकिन इस बार भारत और पाकिस्तान को भी शामिल करना चाहते हैं।
अब जरा आंकड़ों पर नजर डालते हैं। स्वीडन के थिंक टैंक ‘SIPRI’ की रिपोर्ट के मुताबिक, इस वक्त दुनिया में 9 देश हैं जिनके पास न्यूक्लियर हथियार हैं। भारत के पास 172 वॉरहेड्स हैं जबकि पाकिस्तान के पास 170। यानी दोनों देशों में टक्कर कांटे की है। लेकिन असली टेंशन है चीन को लेकर। चीन के पास पिछले साल तक 410 वॉरहेड थे, लेकिन सिर्फ एक साल में उसमें 22% का इजाफा हुआ है और अब चीन के पास 500 वॉरहेड हो चुके हैं। अमेरिका को डर है कि 2030 तक चीन के पास 1000 से ज्यादा परमाणु हथियार हो जाएंगे।

रिपोर्ट के मुताबिक, रूस और अमेरिका के पास दुनिया के कुल न्यूक्लियर हथियारों का 90% हिस्सा है। दोनों देश अपने पुराने हथियारों को धीरे-धीरे खत्म कर रहे हैं। साल 1986 में दुनिया में कुल 70,000 परमाणु हथियार थे, जो अब घटकर करीब 12,121 रह गए हैं। वहीं दक्षिण अफ्रीका ऐसा देश है जिसने खुद अपनी मर्जी से 1991 में अपना परमाणु कार्यक्रम बंद कर दिया था। यूक्रेन, बेलारूस और कजाखिस्तान ने भी सोवियत यूनियन टूटने के बाद अपने न्यूक्लियर प्रोग्राम छोड़ दिए थे।
अब सवाल उठता है कि क्या दुनिया वाकई परमाणु हथियारों से मुक्त हो सकती है? साल 2017 में संयुक्त राष्ट्र ने परमाणु हथियारों पर पूरी तरह से बैन लगाने वाला समझौता तैयार किया था, लेकिन अमेरिका, रूस, ब्रिटेन और फ्रांस जैसे बड़े देश इस समझौते में शामिल ही नहीं हुए। चीन भी साफ कहता है कि जब तक अमेरिका और रूस अपने हथियार नहीं घटाते, तब तक वो अपनी संख्या कम नहीं करेगा।
भारत की बात करें तो भारत ‘नो फर्स्ट यूज’ यानी पहले हमला ना करने की नीति पर भरोसा करता है। लेकिन चीन की बढ़ती ताकत और विस्तारवादी नीति को देखते हुए भारत भी अब अपनी परमाणु क्षमता बढ़ाने में लगा है। पाकिस्तान भी बराबरी करने के लिए लगातार हथियार बना रहा है। भारत अपनी ताकत ऐसे हथियारों में लगा रहा है जो चीन तक मार कर सकें। क्योंकि आने वाले समय में भारत-चीन का मुकाबला सिर्फ जमीन पर नहीं, बल्कि समंदर में भी होगा।
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दोस्तों, अमेरिका और रूस के बीच ‘New START’ नाम की एक परमाणु संधि है, जो फरवरी 2026 में खत्म होने वाली है। उससे पहले दोनों देशों को बैठकर फैसला करना होगा कि इस रेस को कैसे रोका जाए। क्योंकि अगर ये रेस यूं ही चलती रही तो दुनिया एक बड़ी तबाही की तरफ बढ़ सकती है। ट्रंप का ये कदम सही दिशा में है या नहीं… ये तो वक्त बताएगा। लेकिन एक बात तय है, एशिया में परमाणु हथियारों की होड़ (Nuclear Arsenal Race) रुकने वाली नहीं है।