RBI Repo Rate 2025: भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की मौद्रिक नीति समिति (MPC Meeting) की बैठक 5 फरवरी से शुरू हो गई है। इस बैठक के नतीजे 7 फरवरी शुक्रवार को घोषित किए जाएंगे। इस बार नीतिगत दर (Repo Rate) में 0.25 प्रतिशत की कटौती की उम्मीद जताई जा रही है। यदि ऐसा होता है, तो कर्ज सस्ता होने का सिलसिला फिर से शुरू हो सकता है, जिससे आम उपभोक्ताओं और व्यवसायों को राहत मिलेगी।
RBI ने इससे पहले मई 2020 में रेपो रेट को 0.40 प्रतिशत घटाकर 4 प्रतिशत किया था। इसका मकसद अर्थव्यवस्था को कोरोना महामारी और लॉकडाउन के असर से उबारना था। बाद में, रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण मई 2022 में नीतिगत दरों में वृद्धि का सिलसिला शुरू हुआ और मई 2023 में इसे 6.5 प्रतिशत पर स्थिर कर दिया गया।
विशेषज्ञों का मानना है कि फरवरी 2025 की मौद्रिक नीति समीक्षा में दर में कटौती की संभावना ज्यादा है। हालांकि, अगर वैश्विक कारक रुपये की विनिमय दर को कमजोर करते हैं, तो यह कटौती अप्रैल 2025 तक टल सकती है।
इक्रा की मुख्य अर्थशास्त्री अदिति नायर का कहना है कि केंद्रीय बजट में किए गए राजकोषीय प्रोत्साहन से मुद्रास्फीति पर कोई बड़ा असर नहीं पड़ेगा। इसलिए, फरवरी 2025 की मौद्रिक नीति समीक्षा में दर में कटौती की गुंजाइश बन सकती है।
एसबीआई की एक शोध रिपोर्ट में बताया गया है कि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) आधारित मुद्रास्फीति चौथी तिमाही में घटकर 4.5 प्रतिशत और चालू वित्त वर्ष में औसतन 4.8 प्रतिशत रहने की संभावना है। रिपोर्ट के अनुसार, जनवरी 2025 में मुद्रास्फीति का स्तर 4.5 प्रतिशत के आसपास बना हुआ है, जिससे यह संभावना बनती है कि फरवरी और अप्रैल में दो बार कटौती के साथ नीतिगत दर में कुल 0.75 प्रतिशत की कमी की जा सकती है। इसके बाद, अक्टूबर 2025 से नीतिगत दर में कटौती का दूसरा दौर शुरू हो सकता है।
गोल्डमैन सैक्स का भी मानना है कि आरबीआई 0.25 प्रतिशत की कटौती कर सकता है। उनके अनुसार, वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं को देखते हुए यह कटौती आवश्यक हो सकती है। संस्था के भारत के अर्थशास्त्री शांतनु सेनगुप्ता के मुताबिक, नीति निर्माताओं को विभिन्न आर्थिक कारकों का सावधानीपूर्वक प्रबंधन करना होगा।
यह बैठक आरबीआई के नए गवर्नर संजय मल्होत्रा की अध्यक्षता में हो रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि वर्तमान आर्थिक परिस्थितियाँ नीतिगत दर में कटौती के लिए अनुकूल हैं। अगर आरबीआई इस कटौती को मंजूरी देता है, तो यह केंद्रीय बजट में घोषित खपत आधारित मांग वृद्धि के उपायों के पूरक के रूप में काम करेगा।
एसबीआई की रिपोर्ट के अनुसार, मुद्रास्फीति का स्तर 4.5 प्रतिशत तक सीमित रहेगा, जिससे मौद्रिक नीति में नरमी बरकरार रखने की संभावना बढ़ जाएगी। हालांकि, यदि वैश्विक आर्थिक परिस्थितियाँ बिगड़ती हैं, तो यह निर्णय आगे टल सकता है।
अगर आरबीआई रेपो रेट में कटौती करता है, तो इससे ब्याज दरें कम होंगी, जिससे कर्ज सस्ता होगा और निवेश में तेजी आएगी। इससे आम लोगों और व्यवसायों को राहत मिलेगी और आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलेगा। हालांकि, यह कटौती वैश्विक और घरेलू आर्थिक स्थितियों पर निर्भर करेगी। मुद्रास्फीति, डॉलर के मुकाबले रुपये की विनिमय दर और वैश्विक अनिश्चितताओं जैसे कारक इस फैसले को प्रभावित कर सकते हैं।
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