Ramayan Sankirtan: श्री रामायण संकीर्तन के माध्यम से हमें श्रीराम के अनगिनत अद्भुत और दिव्य कार्यों की जानकारी मिलती है, जो न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि जीवन में भक्ति, धैर्य और प्रेरणा का भी अद्भुत स्रोत बनते हैं। इस संकीर्तन में विभिन्न प्रसंगों के माध्यम से श्रीराम के जीवन की महिमा, उनके भक्तों के प्रति प्रेम और उनके द्वारा किए गए कार्यों की विस्तार से चर्चा की जाती है।
कथा रामायण संकीर्तन (Ramayan Sankirtan in Hindi):
रामायण संकीर्तन में राम के बचपन से लेकर उनके राजतिलक तक के अद्भुत घटनाक्रमों का उल्लेख किया गया है। इसका उद्देश्य भक्तों को न केवल श्रीराम की भक्ति में लिप्त करना है, बल्कि उनके जीवन से शिक्षा लेना भी है।
यह संकीर्तन प्रत्येक पाठक और श्रोताओं को राम के कार्यों और उनके जीवन के हर पहलू से जोड़ता है, जिससे जीवन के वास्तविक उद्देश्य को समझने में मदद मिलती है।
इस छोटे से पाठ को रामायण के विशाल ग्रंथ के समान महत्व दिया जाता है। जो व्यक्ति इस संकीर्तन को सुनता और इसे अपने जीवन में उतारता है, उसे रामायण के पूरे पाठ का फल मिलता है, यानी आशीर्वाद, सुख, शांति, और जीवन में अच्छे मार्गदर्शन की प्राप्ति।
आइए पढ़ते है श्री राम संकीर्तन (Read Ramayan Sankirtan)
तब तब प्रगत भये राम। पतित पावन सीताराम ॥1
एक बार उमा गयी शिव पाहि। राम कथा पर रुचि मन माही॥
पुलकित हो कहते शिव धाम। पतित पावन सीताराम ॥2
एक बार जननी अन्हवाए। करि सिंगार पलना पोढ़ाये॥
अद्भुत दर्श दिखाये राम। पतित पावन सीताराम ॥3
भोजन करत बोल जब राजा। नहीं आवट तजि बाल समाजा॥
शिशु लीला करते प्रिय राम। पतित पावन सीताराम ॥4
गुरु गृह पढ़न गए रघुराई। अल्प काल सब विद्याआई॥
चौदह विद्या जाने राम। पतित पावन सीताराम ॥5
महामुनि विश्वामित्र आए। राजा दशरथ कोआचन आए॥
मुनि मांगे लक्ष्मण और राम। पतित पावन सीताराम ॥6
वन म जात ताड़का मारी। मुनि के यज्ञ की करि रखवारी।
अहिल्या पार उतारी राम। पतित पावन सीताराम॥7
जाय जनकपुर शिव धनु तोड़ा। राजाओं के गर्व को तोड़ा॥
सीता जयमाला पहनाई राम। पतित पावन सीताराम॥8
क्रोध करी भृगु नाथ जी आये। उल्टे सीधे वचन सुनाये॥
उनका भरम मिटाया राम। पतित पावन सीताराम ॥ 9
राजा जनक ने दान दियो है। बहुत आदर सत्कार कियो है॥
भाईयन ब्याह घर आये राम। पतित पावन सीताराम ॥10
मात कौशल्या करत आरती। सखियाँ सब मिल मंगल गाती॥
कैसे सुंदर जोड़ी ए राम। पतित पावन सीताराम॥11
राज तिलक की हुई तैयारी। तब कैकयी की मति गयी मारी॥
चौदह वर्ष वन भेजे राम। पतित पावन सीताराम॥12
जब प्रभु गंगा तीर पे आये। गुरु निषाद मिलन को धाए॥
कंदमूल फल भेंटे राम। पतित पावन सीताराम॥13
मांगी नाव न केवट आना। कहे तुम्हारे मरम मै जाना॥
प्रेम से चरण धुलाये राम। पतित पावन सीताराम॥14
जब प्रभु भारद्वाज पहि जाये। करत दंडवत मुनि उर लाये॥
कंदमूल फल खाये राम। पतित पावन सीताराम॥15
तेहि समय इक तापस आवा। प्रभु पहिचानी चरण सिर नावा।
अति प्रेम उर लायो राम। पतित पावन सीताराम॥16
ते सखि कहो पितु मातु है कैसे। जिन पाठाये बन बालक ऐसे॥
सखि आखिन माहि रखियों राम। पतित पावन सीताराम॥17
जब प्रभु बाल्मीक पहि जाये । सब विस्तार से कथा सुनाये॥
चौदह भुवन दिखाये मुनि राम। पतित पावन सीताराम॥18
जब प्रभु चित्रकूट पर आये। सुनि सुनि के सब मुनि जन धाए॥
नाथ स्नाथ भये हम राम। पतित पावन सीताराम॥19
सुमंत्र जब लौट कर आवा। राजा दशरथ को हाल सुनावा॥
सुनते ही राजा त्यागे प्राण। पतित पावन सीताराम॥20
भारत जब ननिहाल से आये। विकल भये अति रुदन मचाये॥
अब ही देखू लखन सियाराम। पतित पावन सीताराम॥21
समाचार जब जनक ने पाये। तुरंत ही चित्रकूट चले आये॥
योगी रूप देखे सियाराम। पतित पवन सीताराम॥22
भारत मुनि सब मिलन को आये। अति प्रेम से निकट बिठाये॥
चरण पादुका दीनी राम। पतित पावन सीताराम॥23
नंदी ग्राम मे कुटिया बनाई। चरण पादुका तख्त बैठाई॥
नित पूजत प्रभु पांवरी राम। पतित पावन सीताराम॥24
भरत स्नेह व्रत नेमा। सब बरनहि अति प्रेमा॥
सकाल सराहें प्रभु पद प्रीति राम। पतित पावन सीताराम॥25
अनुसूईया के पद गही सीता। लिनी असीस परम पुनिता॥
नारी धरम सुनायों राम। पतित पावन सीताराम॥26
जात रहेहु बिरंच के धाम। सुनहो एहिबन आएही राम।
सरभंग अमर पद दीनी राम। पतित पावन सीताराम॥27
मुनि अगस्त्य कर शिष्य सुजान। नाम सूतिरवण रति भगवान॥
गुरु ऋण भये मेरे राम। पतित पावन सीताराम॥28
अस्थि समूह देख रघुराया। विकल भए नैन जल व्यापा॥
भुज उठाए प्रण कीनी राम। पतित पावन सीताराम॥29
जब प्रभु अगस्त्य ऋषि पहिआए। दिव्य अस्त्र शस्त्र पाए॥
निश्चर हीन करऊ महीराम। पतित पावन सीताराम॥30
जब प्रभु पंचवटी पर आए। शूर्पनखा की नाक कटाये॥
खरदूषन को मारा राम। पतित पावन सीताराम॥31
मायामृग मारीच बनायों। जोगी बनकर रावण आयो॥
सूने सीता हर लई राम। पतित पावन सीताराम॥32
मृग मार प्रभु लौट के आए। सूना देख नैन भर आए॥
बन बन खोजत जानकी राम। पतित पावन सीताराम॥33
गीधराज को धाम पठाए। शबरी के आश्रम फल खाये॥
नवधा भक्ति सुनाई राम। पतित पावन सीताराम॥34
जब प्रभु पंपापुर पर आए। नारद मुनि तब बिनय सुनाये॥
सब से उत्तम नाम है राम। पतित पावन सीताराम॥35
जब प्रभु ऋश्यमूक पर आए। हनुमत चरणों शीश नवाए॥
पीठ चढ़ाये लछमण अरु राम। पतित पावन सीताराम॥36
एक बाण से बाली मारा। सुग्रीव को राज दे डाला॥
अंगद युवराज बनायों राम। पतित पावन सीताराम॥37
मुद्रिका दे हनुमान पठाए। सीता की सुध लेकर आए॥
सवर्ण लंक जलायी राम। पतित पावन सीताराम॥38
विभीषण जब शरण मे आए। भुजगहि प्रभु निकट बैठाये॥
राजतिलक कर दीना राम। पतित पावन सीताराम॥39
जब प्रभु समुद्र तट पर आए। मुनि बुलाये शिव स्थापन कराये॥
शिव समान नहीं कोऊ प्रिय राम। पतित पावन सीताराम॥40
हनुमान अंगद नल नीला। जामवंत है अति बल सीला॥
धन मे बाध्यों सेतु राम। पतित पावन सीताराम॥41
उतरे सुबेल पर्वत रघुवीरा। चरण चापत हनुमत बलवीरा॥
वीरासन बैठे लक्ष्मण राम। पतित पावन सीताराम॥42
दूत बनाकर अंगद भेजा। जाकर रावण सन्मुख गरजा॥
सभा बीच पग रोपतो राम। पतित पावन सीताराम॥43
मेघनाथ ने जब शक्ति चलायी। तब लक्ष्मण को मूर्छा आई।
संजीवनी लाये हनुमत राम। पतित पावन सीताराम॥44
अति बलशाली रावण मारा। रहा न कुल कोऊ रोवन हारा॥
राम विमुख ये गति मेरे राम। पतित पावन सीताराम॥45
बानर जब सीता को लाये। तब प्रभु कछु कटु वचन सुनाये॥
अग्नि परीक्षा लीनी राम। पतित पावन सीताराम॥46
विभीषण को जब राजा बनाए। तब पुष्पक विमान ले आए॥
सीता सहित आए प्रभु राम। पतित पावन सीताराम॥47
मात कौशल्या आरती उतारे। देवता सब मिल जय जयकार उतारे॥
धन्य धन्य घड़ी आज की राम। पतित पावन सीताराम॥48
प्रथम तिलक बशिष्ठ मुनि कीन्हा। पुनि सब कहु आयसु दीना॥
राजसिंहासन बैठे राम। पतित पावन सीताराम॥49
दैहिक दैविक भौतिक तापा। राम राज माहु नहि व्यापा॥
बिन गथ वस्तु मिले सब राम। पतित पावन सीताराम॥50
दोऊ सुत जनक सुता ने जाये। दोऊ दोऊ सुत सब भाईयन जाये॥
प्रजा सहित गवने प्रभु धाम। पतित पावन सीताराम॥51
कलयुग मे आधार यही है। मनुष्य जीवन का सार यही है॥
गाये सो पाए प्रभु का धाम। पतित पावन सीताराम॥52
तुलसी रामायण प्रेम से गाये। अजर अमर भक्तिवर पाए॥
तिन को दर्शन देते राम। पतित पावन सीताराम॥53
श्री रामायण संकीर्तन: सम्पूर्ण रामायण के पाठ का फल मात्र इस छोटे से पाठ में
Ramayan Sankirtan pdf in hindi
रामायण संकीर्तन का महत्व:
श्रीराम का जीवन प्रत्येक व्यक्ति के लिए आदर्श और प्रेरणा का स्रोत है। रामायण संकीर्तन के माध्यम से किसी भी प्रकार की बाधाओं को दूर किया जा सकता है। चाहे वह व्यक्तिगत संकट हो या परिवार में कोई समस्या हो, राम की भक्ति में श्रद्धा रखने से हर दुख समाप्त होता है और हर समस्या का समाधान प्राप्त होता है।
Why we should recite ramayan sankirtan
निष्कर्ष: रामायण संकीर्तन मात्र एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह जीवन को सकारात्मक दिशा देने वाला एक अद्भुत उपाय है। यदि हम इस संकीर्तन को श्रद्धा से गाते और सुनते हैं तो न केवल रामायण के धार्मिक महत्व को समझते हैं, बल्कि हमारे जीवन में हर संकट और कष्ट को भी दूर कर सकते हैं।
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