Property: आज हम बात करेंगे इनकम टैक्स अपीलेट ट्राइब्यूनल यानी ITAT के एक बेहद अहम फैसले के बारे में, जिसने असली और कानूनी मालिक के फर्क को साफ कर दिया है। ये फैसला लाखों टैक्सपेयर्स (taxpayers) के लिए राहत भरा साबित हो सकता है। तो चलिए शुरू करते हैं।
ITAT की मुंबई बेंच ने एक केस में साफ कहा है कि प्रॉपर्टी के कागजों (property documents) पर सिर्फ नाम होने से कोई असली मालिक नहीं बन जाता। असली मालिक वही होता है, जिसने वास्तव में प्रॉपर्टी खरीदी हो और जिसका उस पर हक हो।
अक्सर ऐसा देखा जाता है कि लोग प्यार, स्नेह या परिवार की सुरक्षा के लिए पत्नी या भाई का नाम प्रॉपर्टी में जोड़ देते हैं। लेकिन जब प्रॉपर्टी बिकती है, तो इनकम टैक्स डिपार्टमेंट (income tax department) ऐसे नाम जुड़वाने वालों से भी कैपिटल गेन टैक्स वसूलने की कोशिश करता है। ITAT के इस फैसले के बाद ऐसी स्थिति में लोगों को राहत मिलेगी।
इस पूरे मामले में V.N. Jain नाम के एक शख्स का केस सामने आया। जैन के भाई ने प्रॉपर्टी खरीदी थी, लेकिन भाई के कहने पर जैन का नाम भी प्रॉपर्टी में जोड़ दिया गया। बाद में जब ये प्रॉपर्टी करीब 54 लाख रुपये में बिकी, तो इनकम टैक्स विभाग ने जैन से 27 लाख रुपये के हिस्से पर कैपिटल गेन टैक्स मांगा।
टैक्स विभाग का कहना था कि क्योंकि जैन का नाम भी प्रॉपर्टी में था, इसलिए उन्हें टैक्स देना पड़ेगा। लेकिन जैन ने इस पर अपील की और कहा कि उन्होंने न तो खरीद में कोई पैसा दिया था और न ही बेचने के बाद उन्हें कोई रकम मिली। उनका नाम सिर्फ औपचारिकता के लिए जोड़ा गया था।
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ITAT ने इस मामले में बहुत बारीकी से जांच की। बेंच ने देखा कि प्रॉपर्टी खरीदते समय सारा पैसा जैन के भाई ने दिया था। यहां तक कि बिक्री की रकम भी भाई को ही मिली और भाई ने अपनी I-T रिटर्न में भी पूरी रकम दिखाई।
ITAT ने कहा कि सिर्फ कागजों पर नाम होने से कोई मालिक नहीं बन जाता। अगर हकीकत में प्रॉपर्टी किसी और की है, तो टैक्स भी उसी को देना होगा। इसलिए, जैन पर कोई कैपिटल गेन टैक्स नहीं बनता।
टैक्स एक्सपर्ट्स का कहना है कि ये फैसला प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के अनुरूप है। इससे उन लोगों को बड़ी राहत मिलेगी, जिनका नाम सिर्फ औपचारिकता के लिए प्रॉपर्टी में जोड़ा गया है, लेकिन असली हकदार कोई और है।
इस फैसले से ये साफ हो गया है कि प्रॉपर्टी में नाम होना ही मालिक होना नहीं है। असली मालिक वही है, जिसने पैसा लगाया और जो फायदे का हकदार है। ऐसे मामलों में अब बेवजह टैक्स नहीं देना पड़ेगा।