Durga Stuti: भगवान श्री कृष्ण ने की थी इस स्तोत्र से माँ दुर्गा की स्तुति

Durga Stuti: शास्त्रों के अनुसार भगवान श्री कृष्ण ने माँ दुर्गा की इस स्तोत्र से स्तुति की थी, आइए जानते हैं क्या है दुर्गा स्तुति स्तोत्र:

दुर्गा स्तुति (हिन्दी मे) Durga Stuti in hindi

त्वमेवसर्वजननी मूलप्रकृतिरीश्वरी।
त्वमेवाद्या सृष्टिविधौ स्वेच्छया त्रिगुणात्मिका॥

कार्यार्थे सगुणा त्वं च वस्तुतो निर्गुणा स्वयम्।
परब्रह्मस्वरूपा त्वं सत्या नित्या सनातनी॥

तेज:स्वरूपा परमा भक्त अनुग्रहविग्रहा।
सर्वस्वरूपा सर्वेशा सर्वाधारा परात्परा॥

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सर्वबीजस्वरूपा च सर्वपूज्या निराश्रया।
सर्वज्ञा सर्वतोभद्रा सर्वमङ्गलमङ्गला॥

सर्वबुद्धिस्वरूपा च सर्वशक्ति स्वरूपिणी।
सर्वज्ञानप्रदा देवी सर्वज्ञा सर्वभाविनी।

त्वं स्वाहा देवदाने च पितृदाने स्वधा स्वयम्।
दक्षिणा सर्वदाने च सर्वशक्ति स्वरूपिणी।

निद्रा त्वं च दया त्वं च तृष्णा त्वं चात्मन: प्रिया।
क्षुत्क्षान्ति: शान्तिरीशा च कान्ति: सृष्टिश्च शाश्वती॥

श्रद्धा पुष्टिश्च तन्द्रा च लज्जा शोभा दया तथा।
सतां सम्पत्स्वरूपा श्रीर्विपत्तिरसतामिह॥

प्रीतिरूपा पुण्यवतां पापिनां कलहाङ्कुरा।
शश्वत्कर्ममयी शक्ति : सर्वदा सर्वजीविनाम्॥

देवेभ्य: स्वपदो दात्री धातुर्धात्री कृपामयी।
हिताय सर्वदेवानां सर्वासुरविनाशिनी॥

योगनिद्रा योगरूपा योगदात्री च योगिनाम्।
सिद्धिस्वरूपा सिद्धानां सिद्धिदाता सिद्धियोगिनी॥

माहेश्वरी च ब्रह्माणी विष्णुमाया च वैष्णवी।
भद्रदा भद्रकाली च सर्वलोकभयंकरी॥

ग्रामे ग्रामे ग्रामदेवी गृहदेवी गृहे गृहे।
सतां कीर्ति: प्रतिष्ठा च निन्दा त्वमसतां सदा॥

महायुद्धे महामारी दुष्टसंहाररूपिणी।
रक्षास्वरूपा शिष्टानां मातेव हितकारिणी॥

वन्द्या पूज्या स्तुता त्वं च ब्रह्मादीनां च सर्वदा।
ब्राह्मण्यरूपा विप्राणां तपस्या च तपस्विनाम्॥

विद्या विद्यावतां त्वं च बुद्धिर्बुद्धिमतां सताम्।
मेधास्मृतिस्वरूपा च प्रतिभा प्रतिभावताम्॥

राज्ञां प्रतापरूपा च विशां वाणिज्यरूपिणी।
सृष्टौ सृष्टिस्वरूपा त्वं रक्षारूपा च पालने॥

तथान्ते त्वं महामारी विश्वस्य विश्वपूजिते।
कालरात्रिर्महारात्रिर्मोहरात्रिश्च मोहिनी॥

दुरत्यया मे माया त्वंयया सम्मोहितं जगत्।
ययामुग्धो हि विद्वांश्च मोक्षमार्ग न पश्यति॥

इत्यात्मना कृतं स्तोत्रं दुर्गाया दुर्गनाशनम्।
पूजाकाले पठेद् यो हि सिद्धिर्भवति वांछिता॥

वन्ध्या च काकवन्ध्या च मृतवत्सा च दुर्भगा।
श्रुत्वा स्तोत्रं वर्षमेकं सुपुत्रं लभते ध्रुवम्॥

कारागारे महाघोरे यो बद्धो दृढबन्धने।
श्रुत्वा स्तोत्रं मासमेकं बन्धनान्मुच्यते ध्रुवम्॥

यक्ष्मग्रस्तो गलत्कुष्ठी महाशूली महाज्वरी।
श्रुत्वा स्तोत्रं वर्षमेकं सद्यो रोगात् प्रमुच्यते॥

पुत्रभेदे प्रजाभेदे पत्‍‌नीभेदे च दुर्गत:।
श्रुत्वा स्तोत्रं मासमेकं लभते नात्र संशय:॥

राजद्वारे श्मशाने च महारण्ये रणस्थले।
हिंस्त्रजन्तुसमीपे च श्रुत्वा स्तोत्रं प्रमुच्यते॥

गृहदाहे च दावागनै दस्युसैन्यसमन्विते।
स्तोत्रश्रवणमात्रेण लभते नात्र संशय:॥

महादरिद्रो मूर्खश्च वर्ष स्तोत्रं पठेत्तु य:।
विद्यावान धनवांश्चैव स भवेन्नात्र संशय:॥

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