अगर आप या आपके जानने वाले अमेरिका में पढ़ाई करने का सपना देख रहे हैं, तो ये खबर जरूर जानें। अमेरिका का F-1 स्टूडेंट वीजा अब पहले से कहीं ज्यादा मुश्किल होता जा रहा है। जी हां, वित्तीय वर्ष 2023-24 में F-1 वीजा रिजेक्शन रेट अपने 10 साल के सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच चुका है।
आंकड़ों की मानें तो इस साल कुल 6 लाख 79 हजार वीजा एप्लिकेशन में से करीब 2 लाख 79 हजार यानी 41% एप्लिकेशन खारिज कर दिए गए। और सबसे हैरानी की बात ये है कि पिछले साल ये रेट 36% था, यानी एक साल में सीधे 5% की बढ़ोतरी हो गई।
अब आप सोच रहे होंगे, क्या भारत के छात्रों पर भी इसका असर पड़ा है? तो जवाब है – हां, और काफी बड़ा असर पड़ा है। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, 2024 के पहले नौ महीनों में भारतीय छात्रों को मिलने वाले वीजा में करीब 38% की गिरावट आई है। जहां 2023 में इसी अवधि में 1 लाख 3 हजार भारतीय छात्रों को F-1 वीजा मिला था, वहीं 2024 में ये संख्या घटकर सिर्फ 64 हजार पर आ गई।
अगर हम पिछले दस साल के आंकड़े देखें, तो 2014-15 में करीब 8 लाख 56 हजार स्टूडेंट्स ने F-1 वीजा के लिए आवेदन किया था। लेकिन कोरोना महामारी के दौरान ये आंकड़ा घटकर सिर्फ 1 लाख 62 हजार रह गया। बाद में संख्या बढ़ी जरूर, लेकिन अब 2023-24 में फिर से 3% की गिरावट देखने को मिली है।
अब सवाल उठता है – आखिर वीजा रिजेक्शन बढ़ क्यों रहा है?
तो दोस्तों, अमेरिका के विदेश विभाग का कहना है कि हर वीजा एप्लिकेशन ‘आव्रजन और राष्ट्रीयता अधिनियम’ और संघीय नियमों के तहत केस-टू-केस चेक किया जाता है। लेकिन असली ट्विस्ट ये है कि 2019 के बाद से अमेरिका ने वीजा डेटा की गणना करने का तरीका ही बदल दिया है। इससे ये समझ पाना और मुश्किल हो गया है कि असल में रिजेक्शन बढ़ने की वजह क्या है।
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और सिर्फ अमेरिका ही नहीं, बल्कि कनाडा और ब्रिटेन जैसे देशों में भी अब विदेशी छात्रों के लिए पॉलिसी टफ होती जा रही है। कनाडा ने तो 2024 में स्टडी परमिट 35% तक घटाने का ऐलान कर दिया है और 2025 में इसमें और 10% की कटौती की जाएगी। वहीं ब्रिटेन ने विदेशी छात्रों के डिपेंडेंट्स यानी परिवार को साथ ले जाने पर बैन लगा दिया है। नतीजा ये हुआ कि वहां इंटरनेशनल स्टूडेंट्स का एडमिशन 40% तक गिर गया है।
हालांकि इन सबके बावजूद भारतीय छात्र अमेरिका में सबसे बड़े इंटरनेशनल स्टूडेंट ग्रुप बन चुके हैं। 2023-24 में अमेरिका में कुल 3 लाख 31 हजार भारतीय छात्र पढ़ रहे हैं, जो वहां के कुल अंतरराष्ट्रीय छात्रों का करीब 29.4% हिस्सा हैं। और सबसे बड़ी बात – पहली बार भारतीय छात्रों की संख्या चीनी छात्रों से ज्यादा हो गई है।